STORYMIRROR

Savita Gupta

Abstract

3  

Savita Gupta

Abstract

नफ़रत के बीज

नफ़रत के बीज

1 min
224

पत्थर जो चला रहे हो

शायद किसी आशियाँ का है

रहते थे सब सुकून से जिसमें 

वो घर अब खंडहर सा है


सीना छलनी किया जिसका

वो सीना किसी रखवाले का था

तुम चैन से सोते थे जब

वो रात भर जागता रहता था


नफ़रतों के बीज अंकुरित हो रहे

विशाल वृक्ष न बन जाए

जड़ से उखाड़ फेंको 

कीड़े कही न लग जाए


क्यों हिंसा के नशे में डूबे हो

धरना ,प्रदर्शन के नींद से जागो

खुमारी बदले की त्यागो..

निर्दोष न कोई बे मौत मरे

दोषियों को धर पकड़ो।


सेवक हो हम सबकी

उलझन सबकी सुलझावों 

सत्ता के खुमारी से उठकर

विश्वास का दर्पण दिखलाओ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract