नखरे शोभते हैं
नखरे शोभते हैं
बसंत के आगमन से आया निखार;
चंचला चपला कंचन कामिनी पर !
ज़ब चलती है गोरी उचक उचककर;
बल खाती है उसकी लचकती कमर !
मदमस्त मौसम में सब मस्त हो जाते हैं;
कामिनी के कलापों से सुधबुध बिसराते हैं !
सुंदरी के खंज़न से नयन प्रेम सुधा बरसाते हैं;
प्रियतमा के ऐसे नखरे प्रिय को बड़ा शोभते हैं !