नकाब
नकाब
उसने कुछ इस हक़ से माँगा अलविदा मुझसे
ना उसको रोक सके ना जाने को कह सके
उसकी नम आँखों ने खींची कुछ ऐसी दूरिया
के मेरे सारे सबाल जबाब घुटे के घुटे रह गए
लगा यूँ के वक्त का बो लम्हा ठहर सा गया
दिल में एक सैलाब चढ़ता रहा उतरता रहा
ले जा रहे थे बो खुशिया मेरी दामन में समेट
तुम खुश रहना यह वो जाते जाते कह गए
कुछ तो कहते होंगे उससे सूखे गुलाब किताबो में
सुना है मैंने बड़ा जोर होता है बेबस की आहों में
सारी उम्र चलता रहा में बस इक तेरी ही तरफ
मुड़ गए वो जब फासले बस चंद कदमो के रह गए
इस अटकी हुई नाव का अब मुहाफिज कोई नहीं
कब तक संभाले पतवार, यह डूबेगी कभी ना कभी
उसके कहने भर से उतर गए हम इस सैलाब में
और वो किनारे पर हाथ हिलाते ही खड़े रह गए
बाजी लग गई है अब ज़िंदगी और मौत दोनों से
किसी को क्या फर्क मेरे होने या फिर ना होने से
बड़ी धूम से निकाला जनाजा मेरे दोस्तों ने मेरा
और वो मारे शर्मिन्दगी के नकाब ढूँढ़ते रह गए।