नज़राना
नज़राना
तूने छेड़ी ऐसी सरगम, दिल के तार बज उठे
तेरी मौसिकी की तान पर मेरे मन के साज़ बज उठे
होती है तुमसे मुलाकातें बातें
करते हो मोहब्बत तुम भी बेइंतहा हमसे।
आहिस्ता आहिस्ता एहसास ये हो रहा है,
तेरे मेरे ज़ज्बातों का मिलन सा हो रहा है
ख़ुदा से मांगी मन्नत का अंजाम हो रहा है
तेरे इकरार का अनजाना सा नज़राना मिल रहा है ।।