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Bhavna Thaker

Romance

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Bhavna Thaker

Romance

नज़्म

नज़्म

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तुम कहो तो फिर वो ही अंदाज़ में गज़ल लिख दूँ,

जी में आता है जमकर आज मेरे मिजाज़ लिख दूँ।


पूरे चाँद वाली रात यादें जमकर बरसा रही है

लिहाफ़ को सँवारुं थोड़ा दिले नासाज़ लिख दूँ।


यादों की चिलमन से झांकूँ तू बहुत दूर दिखे, 

पूछे मुझे दिल पल-पल तू है नाराज़ लिख दूँ।


बिन सिलवट की चद्दर कचोटते पड़ी है मन को,

उस रात की याद में तड़पते क्या नियाज़ लिख दूँ।


उफ्फ़ तेरी सरगोशियों के इशारे मैं मर न जाऊँ,

दूध नहाया तन  मेरा दिया तूने नवाज़ लिख दूँ।


पूष की सर्द रात को झील में देखा था एक चेहरा, 

शीत पानी में उठे थे तब शोले वो एजाज़ लिख दूँ।


छुआ था आँचल जब तूने आग उठी थी बदन में, 

हुश्न की तामीर में जो तूने उठाए वो नाज़ लिख दूँ। 


उस दिन जो घोला था तुमने मेरे तन के भीतर,

कुछ इस झील से पानी सा वो आगाज़ लिख दूँ।


तुम्हारी अँजूरी का अंश मेरी कोख में पल रहा है,

महसूस हो रहा है भीतर कहो तो ये राज़ लिख दूँ। 



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