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Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract

4  

Dr Jogender Singh(jogi)

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नज़ारा

नज़ारा

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“पता चलेगा सब को अब ” तीन दिन का लॉक्डाउन लगा है । 

“एक दिन का तो जनता कर्फ़्यू है” गीता सुन , तुम्हारी पचपन नम्बर वाली का क्या होगा ? मोटी हिलती तक नहीं , मैंने इसीलिए काम छोड़ दिया था , “ जब देखो हुक्म चलाती रहती थी । पता नहीं कैसे झेलती हो उसको , हाथ नचाते हुये राधिका ने गीता को देखा । बहुत पैसे का घमंड है , अब आटे / दाल के भाव पता पड़ेंगे । नानी याद ना आ गयी तीन दिन में तो मेरा नाम बदल देना । मेरे वाली भी कम नहीं है , पर बीमार है, ठीक है बेचारी ,गहरी साँस छोड़ते हुये राधिका ने जमना की तरफ़ देखा ।

“बात तो तेरी ठीक है , राधिका , ” कितना कम तो पैसा देते हैं , छुट्टी का अलग से काट लेते हैं , कैसे खर्चा चले ? मँहगाई भी तो कितनी हो गयी है , जमना ने दुखड़ा रोया ।अच्छा किया था मोदी जी ने जो नोटबन्दी कर दी थी ।

तुम पागल हो गयी हो , सब बदल लिये अपने अपने नोट इन लोगों ने । मारे तो गरीब गये । छुट्टी ले ले कर लाइन में लगना पड़ा ।पुड़िया फाड़ते हुये बोली राधिका ।” खायेगी ” ?

नहीं , मुझे तो केसर पसंद है , कमला पसंद तू ही खा । महँगा भी तो है ,जीतो बोली।

किशोर साहब , को यही पसंद है , केसर की ख़ुशबू अच्छी नहीं लगती उनको , उन्ही ने सिखा दिया , वो तो पूरे डिब्बे के डिब्बे खा जाते हैं , क्या करें बेचारे “ मेम साहिब तो बीमार रहती है ” । अच्छा , चलती हूँ । मठरी बना कर रख दूँ साहब के लिये ।राधिका उठते हुये बोली ।

“इसने किशोर को फँसा लिया है , कितने रंग / ढंग बदल गये इसके ” जीतो राधिका के जाते ही बोली। कैसे शान से बता रही थी , केसर की ख़ुशबू अच्छी नहीं लगती हुँह , जूती की तरह उतार फेंकेंगे , यह बड़े लोग ऐसे ही होते हैं । 

“ तू क्यों जल रही है ” जमना बोली । उसका आदमी कितना मारता है राधिका को , लगा रही है मन अपना , बंसी को पता चला तो थोड़ा और मार लेगा, क्या फ़र्क़ पड़ता है , जानवर है बंसी , “ आँख फूटते बची राधिका की पिछले महीने , राक्षस । मैंने तो छोड़ दिया रन्नो के पापा को , रोज़ मार खाओ , पैसा भी दो , और मन हो ना हो बिस्तर भी गर्म करो । एक दिन पकड़ लिया हाथ और दे मारा , दे मारा ।अक़्ल ठिकाने आ गयी । घर से निकाल दिया । “ आ जाता है कभी कभी बिल्ली बन कर ” । चल तीन दिन की छुट्टी , फिर देखते हैं , इस बार पैसे बड़वा के ही मानूँगी । 

चलो , गीता और जीतो उठ गयी ।

चलो जमना ने उठते हुये बोला ।


"कल से कैसे हो पायेगा ? न खाना बनाने वाली , न झाड़ू / बर्तन वाली , मुझ से नहीं होगा ।" मानवी ने मानो फ़ैसला सुनाया ।

"मैगी , खिचड़ी , दलिया और सैंडविच यही बन पायेगा ।" 

"मम्मा , बाहर से मंगा लेंगे" , श्री बोली ।

"बेटा , सारे रेस्टौरेंट बंद है ।" 

"पिज़्ज़ा बना लेना मम्मा ।"श्री उत्साहित होते बोली । 

"ठीक है , देखती हूँ ।" 

मानवी चिंतित थी ।कैसे होगा सब , बाहर से भी कुछ नहीं मिलेगा । चलो , राजीव भी तो घर पर ही रहेगा , ऑफ़िस बंद है उसका भी । तीन ही दिन की तो बात है , हो जायेगा । 

कोरोना से बचने का एक ही उपाय है , लॉक्डाउन ।” कल से इक्कीस दिनों के लिये पूरे भारत में लाक्डाउन रहेगा , मतलब पच्चीस मार्च से चौदह अप्रैल तक । ” मोदी जी ने घोषणा की ।राजीव देखो अब कैसे होगा ??" मानवी चिंतित थी ।

"हो जायेगा ,इक्कीस दिन की ही तो बात है , कम से कम बीमारी से तो बच जाएँगे। मोदी जी ने साफ़ साफ़ बताया लॉकडाउन ही एक रास्ता है । तुम और मैं मिल कर कर लेंगे ।" 

"कामवालियों की मौज है , पूरा पैसा मिलेगा काम कोई नही ।"

"कितना पैसा मिलता है , बेचारी को , छोड़ो । बताओ मुझे क्या करना है ?"राजीव ने सीना फुलाया ।

"अभी नाश्ते के बाद डिसाइड करते है।"

"देखो ! झाड़ू मैं लगा दूँगा । सैंडविच तो अच्छी लग रही है । वाइपर से पोंछा भी मार दूँगा कभी कभी ।वाह ! मज़ेदार बनी है , सैंडविच ।" 

"बर्तन , खाना और कपड़े ? खाना तो मैं बना लूँगी । कपड़े कैसे धुलेंगे ?" 

"देखो कपड़े ज़्यादा होंगे नहीं । इस्तरी मैं कर लूँगा ।टेन्शन मत लो यार ।"

"चलो देखते हैं । "

राजीव उठो । सुबह हो गयी ।

"थोड़ा और सोने दो , ऑफ़िस तो जाना नहीं ।"

"अरे उठो यार थोड़ी मदद कर दो ।"

"आता हूँ फ़्रेश हो कर ।"

"झाड़ू कहाँ है ?"" 

"बालकनी में रहती है" , मानवी बोली ।

"कमर टूट गयी , मुश्किल काम है झाड़ू लगाना । लगता तो बहुत आसान पर दम निकाल दिया ।भूख लग गयी , खाने को दो कुछ ।"

"पहले नहा लो ।तब तक पराँठे बन जाएँगे ।"

"ठीक ! तौलिया उठाते हुये राजीव बोला "।

"श्री आओ नाश्ता करो ।"

"फिर पराँठा !" मुँह बिचका कर श्री बोली ।

"खा लो बेटा , अच्छा बना है , लाओ मैं खिला देता हूँ ।"

किसी तरह बीस दिन कट गये ।कल का दिन और बाक़ी । परसों से तो जमना आ जाएगी । अब उसका ध्यान रखूँगी , कितनी मेहनत करती है । थोड़े पैसे भी बढ़ा दूँगी ।

"वाह मेरी बेगम" , राजीव ने चुटकी ली ।

घण्टी बजते ही , मानवी ने दरवाज़ा खोला ,सामने जमना खड़ी थी । कमजोर हो गयी तू जमना ।

"हाँ मेम साहिब ।" 

"तबियत तो ठीक है ना ? "

"तबियत ठीक है , बस आप लोगों के बिना कमजोर हो गयी ।"

"अच्छा , यह सेनीटाईज़र है , बीच / बीच में हाथ धोती रहना । मास्क लगाये रखना । ज़रा सी भी तबियत ख़राब लगे तो छुट्टी ले लेना । आओ काम शुरू करो ।मैं भी मदद करवा दूँगी ।"

"आप आराम करो मेम साहिब मैं कर लूँगी । घर में बैठे /बैठे आदमी की पिच पिच से दिमाग़ ख़राब हो गया तीन हफ़्ते में ।

पर तुम्हारा आदमी तो तुम्हारे साथ नहीं रहता ना ।"

"कौन रखेगा उसे , आ गया वापिस मरने को । छोड़िये उसकी बातें , अब सब ठीक है ।"

"ठीक है जमना ।"

सारा काम क़रीने से ख़त्म कर जमना खाने बैठी ! तो मानवी सलाद ले आयी , यह भी लो जमना । और इस महीने से पगार में एक हज़ार ज़्यादा ।

"मेम साहिब मेरी तरफ़ से थैंकयू ।" जमना मुस्कुराई । 

दोनो को एक दूसरे का दर्द और महता समझ आ गयी । दोनो संतुष्ट नज़र आ रहीं थी । जमना मन से खाना खा रही थी , इतने चाव से पहली बार ।

 सब कुछ वही था , बस देखने का नज़रिया बदल गया । नजारा अब दिलकश हो गया । 



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