निस्वार्थ स्नेह
निस्वार्थ स्नेह
माँ का निस्वार्थ स्नेह
कितना गहरा, गाढ़ा होता है
जो हर वक्त हृदय को छू लेता है
बच्चा जरा भी बिलखता,
आँखों से ओझल होता
माँ पूरा कार्य छोड़कर
उसी ओर भागी भागी जाती
गोदी में उठाकर दुलार बरसाती
अमृत धारा से पोषित करती
ठंड, धूप सब स्वयं पर झेलकर
जटिल से जटिल कष्ट उठाकर
वात्सल्य से महफ़ूज़ रखती ।
