निश्चय
निश्चय
जब भी देखता हूँ देश में भ्रष्टाचार
मचा हुआ हर तरफ हाहाकार
मानवता को होता हुआ लाचार
देश से मिटता हुआ सदाचार और शिष्टाचार।
करता हूँ निश्चय यही हर बार
मिटा दूँगा मैं भ्रष्टाचार
दुनिया में मानवता को फैलाऊँगा अपार
खत्म कर दूँगा मचा हुआ हाहाकार।
देश मे स्थापित होगा नया आचार और व्यवहार,
पर कुछ नहीं कर पाता हर बार
बस ह्रदय मे कोंध कर ही रह जाता यह विचार
कुछ पल में पाता खुद को लाचार।
बस ह्रदय मे उठता रहता तूफान यह हर बार,
पर अब नहीं रुक सकता मैं इस बार
कर रहा हूँ आत्मबल संगठित अपार
खोज ली है इनसे टकराने की नई धार।
चाहे होना पड़े खुद को बलिदान भी इस बार,
रुकूँगा मिटा कर भ्रष्टाचार।।