STORYMIRROR

निश्चय

निश्चय

1 min
739


जब भी देखता हूँ देश में भ्रष्टाचार

मचा हुआ हर तरफ हाहाकार

मानवता को होता हुआ लाचार

देश से मिटता हुआ सदाचार और शिष्टाचार।


करता हूँ निश्चय यही हर बार

मिटा दूँगा मैं भ्रष्टाचार

दुनिया में मानवता को फैलाऊँगा अपार

खत्म कर दूँगा मचा हुआ हाहाकार।


देश मे स्थापित होगा नया आचार और व्यवहार,

पर कुछ नहीं कर पाता हर बार

बस ह्रदय मे कोंध कर ही रह जाता यह विचार

कुछ पल में पाता खुद को लाचार।


बस ह्रदय मे उठता रहता तूफान यह हर बार,

पर अब नहीं रुक सकता मैं इस बार

कर रहा हूँ आत्मबल संगठित अपार

खोज ली है इनसे टकराने की नई धार।


चाहे होना पड़े खुद को बलिदान भी इस बार,

रुकूँगा मिटा कर भ्रष्टाचार।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational