निशानी
निशानी
चाहतो के बाज़ार में
हम उनका इंतज़ार ही कर रहे थे !
वह आए और हमारा ही भाव लग गए !
और तो और हमें तो संभालने का
मौका भी ना दिया उन्होंने,
और वो अपनी दूसरी महोब्बत में
मसरूफ भी हो गए।
कभी वह जो हमारी मंजिल थे !
पर आज वही हमारे लिये
सिर्फ़ एक सड़क हो गए।
कभी इश्क़ किया था,
हमने उनसे अपनी जान से भी ज्यादा !
आज उसी इश्क़ की निशानी के लिए
हम अपनी जिन्दगी संवार गए !