निरूत्तर
निरूत्तर
मौन हूं मैं
मौन की वृथा मौन सुन ले गर
साँस से साँस का तालमेल मिल नहीं पाता
अगर विचार न मिले।
संस्कृति और संस्कार देखकर,
माँ बाप की उपेक्षा देख कर ।रिश्तों के बोझ देखकर
आधुनिकता का दंभ देखकर
मौन हूं मै
छोटों का बड़ों के प्रति उपेक्षा भाव देखकर
मौन हूं मै
आगे बढ़ने की इस अंधी दौड़ में
दिखावे के मुखौटों को देख कर
अपनों को उपेक्षित देखकर
मौन हूं मैं
रिश्तों में मिलावट और बनावट देखकर
सच मे झूठ की चाशनी निचोड़ कर
झूठ मे लिपटा छल देखकर , अपनो की दिखावे को
नुमाईश देखकर , बेबस माँ बाप की जुदाई देख कर
औलाद को माँ बाप बोझ लगने लगे
मौन हूं मैं,अपनों के द्वारा अपनों को गिराते देखकर
मौन हूं बस मौन हूं मैं , शून्य की भांति
दंभ और अभिमान में टूटते परिवारों को देखकर
मौन हूं मैं
अपनेपन मे छलते ख्वाब देख कर
रिश्तों की गरिमा को तार तार देखकर
मौन हूं मैं,उधडे रिश्तों की तुरपाई
अब कौन करता है ,उघड़ते रिश्तों की रुसवाई देखकर
मौन हूं क्षुब्ध मौन हूं मैं हां मौन हूं मैं
दिल मे अनंत अश्रु का सैलाब लेकर , टूटते सिमटते रिश्तो
का अंजाम देख कर बेबसी मे ओढे दर्द को देखकर
मौन के अंधेरों मे टूटते विशवास की पहचान देखकर
मायूसी की दहलीज पर बैठी
मौन हूँ मैं.......