स्वाभिमानी
स्वाभिमानी
स्वाभिमानी तो बन पर अभिमानी मत बन
छोटी सी लकीर ही तो है दोनों के बीच
अभिमानी बन अकेला हो जायेगा
अकड़ रहा तो पकड़ छूट जायेगी
अकेला कहाँ तक चल पाएगा
थोड़ा झुक जा तो देख दुनिया
झुक जायेगी क़दमों में तेरे
अकड़ते हुए पेड़ सूख जातें है
फलों से लदा पेड़ झुक कर बुलाता
लुभाता दे मीठे फल का उपहार
अकडे तो शव समान हो तुम
लचीले तो जीभ सामान हो तुम
रसों का आनंद मिल जायेगा
थोड़ी सी तो अकड़ भी जरूरी है पर
साथ मिले सबका इसके लिए
थोड़ा झुकना भी जरुरी है
स्वाभिमानी बन पर अभिमानी मत बन
अकेला टूटता चला जायेगा
साथ मिल जायेगा सबका तो
सफर की मुश्किलें असां हो जायेगी
हँसते हँसते सफर कट जायेगा।