निर्भया 2.0
निर्भया 2.0
तुम मंदिर की शिला में उलझे थे,
वो सिया को फिर झुलसा गए,
तुम राम राज्य के सपने बुनते,
वो एक और निर्भया दफना गए,
मंदिर की नींव बिछाकर जो,
इतना तुम हर्षाये थे,
कलयुग के इन रक्तबीज़ों को,
पीछे भूल तुम आये थे,
वो त्रेता का जो रावण था,
स्त्री लज़्ज़ा का फिर भी परायण था,
ये कलयुग के आतताई हैं,
मानव नहीं दरिंदे कसाई हैं!
मेरे देश की हर बिटिया,
बेशक सहमी व सतायी है,
पर राम नाम के वोट बैंक ने,
जनता खूब लुभाई है !