निराशा के कांटे
निराशा के कांटे
अजीब किस्सा है जिंदगी का कब किस पल क्या हो जाए,
कभी सुख की है बरसात तो कभी दुख के बादल छा जाए,
कभी एक आशा बढ़-चढ़कर जिंदगी के रास्ते खोल देती है,
तो कभी बिखरी उम्मीद पल-पल निराशा के कांटे चुभाती है,
खट्टी मीठी सी जिंदगी कभी जमीं तो कभी आसमान होती है,
कभी देती मखमली सी राहें तो कभी दर्द का जाल बिछाती है,
जरूरी तो नहीं हर दिन खुशियों का जाम ही पिलाए जिंदगी,
कभी-कभी ग़म देकर वो उदासी के कड़वे घूंट भी पिलाती है,
माना निराशा के कांटे ज़ख्म देकर जीवन नासूर कर देते हैं,
पर समझदार वही जो वक्त पे इन कांटों को निकाल लेते हैं,
निराशा पल पल जिंदगी को घोर अंधकार में धकेल देती है,
और निराशावादी होकर कोई जंग जीती नहीं जा सकती है,
असफलताओं के आने से ये जिंदगी खत्म तो नहीं हो जाती,
निराश होकर बैठ जाने से कोई समस्या खत्म नहीं हो जाती,
इसलिए निराशा छोड़कर आशावादी बनो निरंतर कर्म करो,
ख़्वाब टूट भी जाए तो क्या ख़ुद के हौसले पर विश्वास रखो।