निराश मत होना
निराश मत होना
निराश मत होना
मेरे प्रिय मित्र
अपने आस पास बनते हुये
अप्रिय परिवेश से।
ये तो आने जाने के सिलसिले हैं
कभी प्रिय अप्रिय लगता है
कभी अप्रिय प्रिय लगता है
अपनी जिम्मेदारी की बात है।
जो समर्पित होता है
वो यकीनन कहां होता है
होता भी है तो दिखता नहीं है
दिखता है तो बोलता नहीं है
बोलता भी है तो
उस पर यकीन नहीं होता है।
यकीन भी हो जाये तो
उसके साथ चलना मुश्किल होता है।
हर रास्ता जैसे जंगल
हर मन्जिल जैसे सपना
और तुम में तो शक्ति है प्रिये।
जंगल मे रास्ता बना लेने की
सपने को सच मे बदलने की
तुम्हे तो कुछ करना भी नहीं है
सिवाय अपनी जिम्मेदारियों
को निभाने के।