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Abhilasha Chauhan

Romance Others

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Abhilasha Chauhan

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नील-पीत की मनहर आभा

नील-पीत की मनहर आभा

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यमुना तट पे सघन कुंज में,

बैठे राधेश्याम।

नील-पीत की मनहर आभा,

देखूँ आठों याम।


राधा अपनी सुध-बुध भूली,

रंगी कृष्ण के रंग,

कृष्ण पुकारें राधा-राधा,

मन में बसी उमंग।

सबकी बाधा दूर करें वे

मनमोहन घनश्याम।

नील-पीत की मनहर आभा

देखूँ आठों याम।


तीनों लोक हुए बलिहारी,

देख छवि वो न्यारी।

ध्यान लगा के ऐसे बैठे,

सुध न रही हमारी।

पत्ता-पत्ता देख रहा है,

लीला राधा-श्याम।

नील-पीत की मनहर आभा

देखूं आठों याम।



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