नील-पीत की मनहर आभा
नील-पीत की मनहर आभा
यमुना तट पे सघन कुंज में,
बैठे राधेश्याम।
नील-पीत की मनहर आभा,
देखूँ आठों याम।
राधा अपनी सुध-बुध भूली,
रंगी कृष्ण के रंग,
कृष्ण पुकारें राधा-राधा,
मन में बसी उमंग।
सबकी बाधा दूर करें वे
मनमोहन घनश्याम।
नील-पीत की मनहर आभा
देखूँ आठों याम।
तीनों लोक हुए बलिहारी,
देख छवि वो न्यारी।
ध्यान लगा के ऐसे बैठे,
सुध न रही हमारी।
पत्ता-पत्ता देख रहा है,
लीला राधा-श्याम।
नील-पीत की मनहर आभा
देखूं आठों याम।

