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Phool Singh

Tragedy Action

4  

Phool Singh

Tragedy Action

नई नवेली दुल्हन

नई नवेली दुल्हन

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नस -नस मेरी ढीली पड़ती, दही भी अकड़ जाती है 

सभी को खुश मैं कर न पाती, कमी तो कुछ कर जाती हूँ।।


न सोने का वक़्त मेरा, न उठने का ही, जागती-चिंतित रहती हूँ 

अजीब बेचैनी, रहती उदासी हरदम, कभी थकान से चूर हो जाती हूँ।।


ख्वाहिश पूरी ना होती किसी की, अन्तर्मन तक टूट, बिखर मैं जाती हूँ 

गिले-शिकवे भी सुनती सभी के, छुप-छुप के अश्क बहाती हूँ।।


दर्द-पीड़ा कुछ कह न पाती, थर्र-थर्र कांप भी जाती हूँ 

भूल से भी कोई गलती हो न, हर काम पर ध्यान लगाती हूँ।।


बड़े-छोटे मेरे हुक्म चलाते, न मना कभी कर पाती हूँ 

आने-जाने वालों की इज्जत-मान को, मन, धन से खूब निभाती हूँ।।


पीहर के मान को मन में संजोय, हर सुख-दुख सहन कर जाती हूँ 

जिस दर पर मेरी डोली आई, उस दर का मान बढ़ाती हूँ।।


देखता-जानता हर कोई मुझको, न मदद किसी से पाती हूँ  

क्या करूँ, कैसे करूँ, कुछ समझ न पाती हूँ, फिर भी कमी कोई कर जाती हूँ।।

 

कुछ जानती-सीखती तब तक, कोई भूल बड़ी कर जाती हूँ 

ढूँढे से भी हल न मिलता, आखिर कमी कहाँ कर जाती हूँ?


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