नई नवेली दुल्हन
नई नवेली दुल्हन
नस -नस मेरी ढीली पड़ती, दही भी अकड़ जाती है
सभी को खुश मैं कर न पाती, कमी तो कुछ कर जाती हूँ।।
न सोने का वक़्त मेरा, न उठने का ही, जागती-चिंतित रहती हूँ
अजीब बेचैनी, रहती उदासी हरदम, कभी थकान से चूर हो जाती हूँ।।
ख्वाहिश पूरी ना होती किसी की, अन्तर्मन तक टूट, बिखर मैं जाती हूँ
गिले-शिकवे भी सुनती सभी के, छुप-छुप के अश्क बहाती हूँ।।
दर्द-पीड़ा कुछ कह न पाती, थर्र-थर्र कांप भी जाती हूँ
भूल से भी कोई गलती हो न, हर काम पर ध्यान लगाती हूँ।।
बड़े-छोटे मेरे हुक्म चलाते, न मना कभी कर पाती हूँ
आने-जाने वालों की इज्जत-मान को, मन, धन से खूब निभाती हूँ।।
पीहर के मान को मन में संजोय, हर सुख-दुख सहन कर जाती हूँ
जिस दर पर मेरी डोली आई, उस दर का मान बढ़ाती हूँ।।
देखता-जानता हर कोई मुझको, न मदद किसी से पाती हूँ
क्या करूँ, कैसे करूँ, कुछ समझ न पाती हूँ, फिर भी कमी कोई कर जाती हूँ।।
कुछ जानती-सीखती तब तक, कोई भूल बड़ी कर जाती हूँ
ढूँढे से भी हल न मिलता, आखिर कमी कहाँ कर जाती हूँ?