नेता जी और मंच
नेता जी और मंच
एक राजनेता किसी मंच से गिर गए,
गिरे क्या जी वो तो चमचों से घिर गए!
कोई दौड़ गया डॉक्टर को बुलाने को,
बना दिया गया मुद्दा, उनके गिर जाने को!
कोई चमचा दौड़कर नींबूपानी ले आया,
गिरना क्या था, नेता जी ने मुद्दा भुनाया!
वे बोले,"मंच आजकल सहारा नहीं दे रहा है,
घंटों बोझा उठानेवाला मिनटों में ढह रहा है!,
मानो मंच नहीं रहा आम आदमी हो गया हो,
या फिर वो अपना बोझ इस पे रख सो गया हो?"
इस अर्थव्यवस्था की तरह ये मंच चरमरा गया,
अच्छे मंच का बुना गया सारा प्रपंच धरा गया!
नेता जी ने भी मंच के कारीगर को इनाम दिया,
मंच की कारीगरी के लिए शत-शत प्रणाम किया!
बोले,"कारीगरों को विदेश की कंपनियां ट्रेनिंग देंगी,
भारत में कर रहे हैं स्थापित देश को वो ट्रेडिंग देंगी!
अब मंच भारत के माल से विदेशी कंपनियां बनाएंगी,
इससे भारतदेश में असँख्य मात्रा में नौकरियां आएँगी!"
"सुख शान्ति से भरे ये दिन सर्वदा बरक़रार रखे जाएंगे,
आज नहीं तो कल इस शासन में इनसे अच्छे दिन आएंगे!
आज तो मंच से गिरे हैं, अब हम फिर नया मंच बनवाएंगे,
इस बार हम मंच से नहीं गिरेंगे सीधे नज़रों से गिर जाएंगे!"