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नायाब तोहफ़ा

नायाब तोहफ़ा

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ना छोड़ जाओ, ये तोहफ़ा नायाब तो दे दो

बरसती आँखों को कोई हिजाब तो दे दो


ख़ामोशियों की चादर क्यों ओढ़े है रैना

धड़कनों से सही, कुछ जवाब तो दे दो ।।


मालूम है मुझसे तुम दूर जा रही हो

झूठे ही सही, कुछ ख़्वाब तो दे दो ।


आहट मैं सुन लूँगा साँसों की तुम्हारी

कुछ पल का सही, ये शबाब तो दे दो ।।


भूल जाऊँगा तुमको आज और अभी से

बस बीते हुए लम्हों का हिसाब तो दे दो ।।


“तलाश” में मर न जाऊँ कहीं मैं तुम्हारी

मुझे बस अपनी आदत ख़राब तो दे दो ।।


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