नारी
नारी
अबला नहीं आज की नारी-शक्ति का भंडार है
समकक्ष पुरुष के रहती इसकी, महिमा अपरम्पार है
वर्षों हुई प्रताड़ित यह, अपनों ने तिरस्कार किया
पिता के घर में रही पराई, पति गृह अत्याचार हुआ।
बेटा होने पर बँटी मिठाई, बेटी जनना अपराध हुआ
बेटे की चाह में कितनों ने, अजन्मी कन्या को मार दिया
समझा बेटी को बोझ उसे, शिक्षा से भी वंचित रखा
कर्म क्षेत्र परिवार मान, चारदीवारी में घर की कैद रखा।
सदियों से जकड़ी बेड़ियाँ तोड़, अब वह बाहर आई है
शिक्षा के अमूल्य रत्न से अपनी, अलग पहचान बनाई है
साबित किया है नारी ने, पुरुष से वह न कम तर है
बिज़नस वुमन, पाइलट, इंजीनियर और डॉक्टर है।
ईश्वर ने भी नारी को, पुरुष से है बढ़ कर जाना
दायित्व सृजन का देकर, शक्ति का उसे प्रतीक माना
सृष्टि की जननी नारी, दुर्गा का अवतार है
नारी ईश्वर द्वारा प्रदत्त, सर्वोत्तम उपहार है।।