नारी
नारी
कितने रूप तुम्हारे है क्या
सुनती हो तुम नारी
कभी माँ कभी बहन
और पत्नी बेटी भी हो प्यारी
कितने लिख चुके है महाकाव्य
न जाने कितनी लिखी गयी कथाएं
तुम्हारे रूप का वर्णन
ग्रंथ भी न कर पाएं
है प्रणाम तुमको शक्ति
यूं ही जग को कृतार्थ करो
अपनी शक्ति से तुम
बन दुर्गा संहार करो।
