नारी
नारी
नारी होती चांद के जैसा जिस पर कई दाग है
पर उसकी चमक से पूरी दुनिया होती बेदाग है
हर इंसान का अलग नजरिया है उसको निहारने का
कोई उसे अंधेरा माने तो कोई मानता उसे चिराग है
दुनिया के हर उलझन पर करती है डटकर सामना वो,
किसी मधुर सुंदर संगीत की वो मीठी सी सुरिली राग है
वो चाहे तो सृष्टि को बदल दे वो चाहे हर भाग्य पलट दे
ज़माने को राह दिखाने उसके अंदर जलती एक आग है,
हर इक रिश्ते को बखूबी निभाती हर वादे वो निभाती है
पर इक रिश्ता सबसे ऊपर जो कि उसका सुहाग है।
