बड़ों की अहमियत
बड़ों की अहमियत
बचपन के कुछ किस्से जब जब याद आ जाते हैं,
वही पुराने चेहरे वापस अब आँखों में छा जाते हैं,
कभी उँगलियाँ पकड़ पकड़ कर चलते थे जिनके सब,
उन्ही उँगलियों ने जाकर छोड़ दिया तन्हा राहो में अब,
सींचा था जिसने बगिया में फूलो को खून पसीनो से,
वही माली घूम रहा तन्हा सड़क पे जाने कई महीनो से
छोड़ आते हैं क्यों जाने लोग अपने घर के चरागों को,
टूटते हैं जब धागे तो फिर गाँठ भी मिलती है धागों को.
सहेज रखो अपने बुजुर्गों को अपने ही घर के तुम आँगन में,
जैसे झूमते हैं इस जहाँ में फूल,पंछी प्रेमी प्रेमिका हर सावन में!