नारी तेरी यहीं कहानी
नारी तेरी यहीं कहानी
हर नारी की यहीं हैं..कहानी..
घर की जिम्मेदारी की रवानी बन..
कभी बहू बन कभी बेटी बन..
कभी पत्नी बन कभी मां बन..
कभी बहन बन कभी दोस्त बन..
हर एक रिश्ते की मर्यादा बन..
निभाती है.. वो सखी साथ बन..
कभी सुख –दुख में सारथी बन..
हर रिश्ता निभाती हैं... प्यार बन..
फिर भी क्यो तन्हा रह जाती है..
कभी उसे सीता कभी देवी बना देते हैं..
कभी हर रिश्तों में उसे जला देते हैं..
क्या रिश्ता सिर्फ उस नारी का हैं..
जो सिर्फ उसे दिल से निभाना हैं..
या तकदीर में लिखा एक पन्ना है..
जो कभी उसे किताब बना देते हैं..
कोरे कागज़ पर लिख देते हैं..ढेर सारे पैमाने..
जिसमे उसे कैद कर देते कुछ शब्द के तहखाने..
उसी में अटकी रहती हैं.. उसकी कहानी..
बंद किताब पर जैसे धूल जम जानी..
यहीं हैं..उसकी अपनी जिंदगानी ..
वा रे सहमी सी भारतीय नारी..
हर नारी की यहीं कहानी...