नारी की बारी
नारी की बारी
कठिन है सरल बनना
तुम को मैं बनकर समझना
कैसे कहूँ तुझे एक अबला नारी
तुम पर है घर का बोझ भारी
नारी होना एक पूर्ण यात्रा है
प्रेम-त्याग सहरा भरोसा की
अंकुर से छायादार फलदार वृक्ष की
बेटी से माँ और दादी बन जाने की
हर मोड़ पर खुद को मिटाकर
वंश वृक्ष की मिट्टी बन जाने की
सबकी अपेक्षा तुमसे
संतान को पालन पोषण और संस्कार की
पति को सहयोग और प्यार की
दोनों कुल को मान मर्यादा की
तुम्हारे पल्लू में प्यार लिपटा है
तुम्हारे आँचल में ममता का भंडार छिपा है
तुम साक्षात अन्नपूर्णा
सबके स्वाद और सेहत का ध्यान तुमको
मालूम नहीं पड़ता कितना प्यार कितना पसीना
मिलाकर तुम थाली में स्वाद डालती हो
चेहरा देख भूख का प्रकार जान जाती हो
कभी सादी चाय तो कभी भजिया भी लाती हो
ऑफिस जाते वक्त टाई की गांठ बन जाती हो
टिफ़िन में घुस ऑफिस में भी खिलाती हो
कोई बीमार हो तो नर्स बन जाती हो
परीक्षा के समय तुम अलार्म बन जाती हो
चौबीस तास की सफाई कर्मचारी हो
सब पर बारीक रखती निगरानी हो
फोन में भी घूस जाती तुम्हारी आँखें
आवाज के बदलाव से सब जान जाती हो
तुम्हारा सब भार हम नहीं उठा सकते हैं
फिर भी कुछ तो हाथ बटा सकते हैं
तुमको किचन से सप्ताहिक छुट्टी दिलाते हैं
कुछ अपने प्यार-पसीने के स्वाद चखाते हैं
एक नई नीति बनाते हैं
एक नई रीति अपनाते हैं
माँ बीबी दादी को एक रोज की छुट्टी दिलाते हैं
नर सब मिलकर एक रोज की नारी बन जाते हैं
चलो नई अलख जागते हैं
साप्ताहिक छुट्टी की अधिकारी
अब घर-घर हर नारी की बारी
चलो नर मिल करो तैयारी
मिले मौका सब को बारी बारी
हफ़्ते में एक रोज नारी की बारी !!