नानी
नानी
बालों में जिसके फ़ैली चाँदनी
बातों से जिसके छलके चाशनी
बस ऐसी ही हैं मेरी नानी
सबसे प्यारी, सबसे ज्ञानी।
अक्षर ज्ञान नही है
खुद को अनपढ़ बताती हैं।
पर मेरे चेहरे को
बखूबी पढ़ना जानती हैं।
अब उनकी श्रवण शक्ति में
वो बात कहाँ
कुछ का कुछ सुन जाती हैं।
पर न जाने कैसे
मेरी अनकही हर बात आज भी
वो बखूबी सुन पाती हैं।
अब उनके पैरों में वो शक्ति कहाँ
कदम भी डगमगाते हैं यहाँ-वहाँ
पर मेरी मंज़िलें वही चुनती हैं
कि मुझे जाना है कहाँ।
मेरे हौसलों में जान
उनकी पोपली मुस्कान से है।
मेरे पंखों में प्राण
उनके अधूरे अरमान से है।
कौन कहता है कि हमेशा
मूल से ज़्यादा सूद से प्यार होता है?
नानी को देख कर लगता है
कि हर बच्चे को अपनी माँ से ज़्यादा
अपनी माँ की माँ से प्यार होता है।