नांच न जाने आंगन टेढ़ा
नांच न जाने आंगन टेढ़ा
दोष जहां में बढ़ गये, निर्दोषी करे गुहार,
नाच न जाने आंगन टेढ़ा, नहीं रहा प्यार,
दुखों के जहान में, सुख ढूंढे लोग हजार,
इसलिये तो मचा हुआ, जन हाहाकार।
अमीर करे खोटे कर्म, भोगते गरीब लोग,
पाप कर्म इतना बढ़ा, जैसे छूत का रोग,
मांस मदिरा की जहां, लगा रहा है भोग,
कब लेंगे अवतार वो, बना नहीं संजोग।
देख रहे हैं खड़े हुये, पड़े गरीब पर मार,
जीत लगेगी सबल हाथ, गरीब मिले हार,
अब तो काम बने नहीं, करना पड़ इंतजार,
जीना हो जगत में तो, बदल लो व्यवहार।
नाच न जाने आंगन टेढ़ा, कहते हैं लोग,
धन दौलत जगत में, अस्त्र कहो अमोघ,
खा रहा दिन रात अब, जैसे कैंसर रोग,
जीवन जी ले पूरा तो, कहलाता संजोग।।