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Sheetal Dange

Abstract

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Sheetal Dange

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नागफणी

नागफणी

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धंसे हैं मेरे पांव,

बंजर, सूखी धरती में।

दिन भर सहती हूं,

लपलपाती लू के थपेड़े।


कोंपलों को मुरझाते हुए

रोज ही देखा है।

फिर भी जीने की ज़िद पर

अड़ी हूं मैं !

हां ! नागफणी हूं मैं।


शौक मुझे भी है

लहलहाती डालियों का।

ओढ़ रखा है पर

लिबास कांटों का।


हर ओस की बूंद को

संजो के रखा है।

नस नस में आस लिए

खड़ी हूं मैं !

हां ! नागफणी हूं मैं।


सृजन के कुछ पल

पाये भी हैं

हँसी के कुछ फूल

खिलाए भी हैं।


पर याद वही रखते हैं,

जिन्होंने मुझे चखा है।

कहीं दवा तो कहीं

सिर्फ झाड़ी हूँ मैं !

हाँ ! नागफणी हूं मैं


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