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Vivek Agarwal

Romance

4.8  

Vivek Agarwal

Romance

न तू ग़लत न मैं ग़लत

न तू ग़लत न मैं ग़लत

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तू आग थी मैं आब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।

तू ज़िन्दगी मैं ख़्वाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।


उधर भी आग थी लगी इधर भी जोश था चढ़ा,

नया नया शबाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।


जो सुर्ख़ प्यार का निशाँ तिरी निगाह में रोज था,

मिरे लिये गुलाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।


ख़मोश लब तिरे रहे हमेशा उस सवाल पर,

वही तिरा जवाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।


ख़ुशी व ग़म का बाँटना मिरे लिए वो प्यार था, 

तिरे लिए हिसाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।


दिलों में गाँठ क्यूँ पड़ी ये आज तक नहीं पता,

वो वक़्त ही ख़राब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।


अलग अलग है रास्ता अलग अलग हैं मंज़िलें,

कोई न हम-रिकाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।


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