हमसफर
हमसफर
सागर हो प्यार का ये सोचा था कभी
पर खुश हूं आज एक बूंद में
इस बून्द में खारापन महसूस होता नहीं
सागर के खारेपन को कहाँ झेल पाती
प्यास हो जब जन्मों की तो
बून्द भी सागर सी हो जाती है
मैं तो सागर की गहराई छूना चाहती थी
हमसफर बन तूने बून्द को ही सागर बना दिया
रोमांच कुछ ऐसा अद्भुत सा किया उन बूंदों ने
तपती काया को निर्मल बना दिया
गहराई तो उन बूंदों में भी होती है
बस उसे छूने का हुनर आना चाहिए
सागर मिले भी तो प्यास कहाँ मिटती
बून्द तो एक ही काफी है
जन्मों की प्यास के लिए।