मेरा श्रृंगार
मेरा श्रृंगार
किये सब सोलह सृंगार,
प्रियतम को रिझाने को,
रंग गयी मैं प्रियतम में ही,
बस उसको ही पाने को,
न रहा फिर देह का भान,
न कोई भी सुध बुध भी,
कर सृंगार मन आज फिर,
खो गया बस उस प्रियतम में,
कण कण में जो वास् कर,
हर पल ही संग होता हैं,
पहन फिर उसका ही चोला,
चल दी बस बस संग ही उसके,
जो बस और बस मेरा है,
पहन उसके नाम का चोला,
मन सृंगार करता हैं,
मैं बस एक प्रेम दीवानी,
बस उसमे ही रमती हूँ,
यही बस श्रृंगार हैं मेरा,
हर पल मैं जो करती हूँ।