Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Lipi Sahoo

Romance

4.8  

Lipi Sahoo

Romance

सिलसिला

सिलसिला

1 min
243


एक बार पुकार लो

मेरा नाम लेकर

शहर भर के शोर शराबे में

सायद अनसुनी सी रह जाती हूं 


बार बार ये एहसास होता है

अचानक मिल जाओगे किसी चौराहे पर

शायद मिलने की कोशिश भी की होगी

पर गुम हूं अपनी बसाई दुनिया में


अंजाने में सही महसूस होता है 

अभी अभी तुम से रुबरु हूई

हल्का सा एक हावा का झोंका

छू कर निकल जाता है


हर इक पगडंडी पर

ढूंढती फिरूँ में पैरों के निशान

ना चाहते हुए उलझ ही जाता हूं

अपनी ही सरहद की गलियों में


बेबस मैं हूं तुम नहीं

फिर क्यों छुपाते हो अपना परिचय

भली भाती वाकिफ हो

नाकामियाब रहूंगी हर इंतेहान में


पहचान की कोई तो सुराग़ दो

बर्ना क्या रखा है ऐसे छुपमछुपाई में

कौन सा भेष तुम्हारा

जोगी हो या राजा 


लगने लगा है मिलोगे तब

जब मैं ! मैं ना रहूं और तुम ! तुम ना रहो

पूरी संसार मुझमें समां जाये या मैं सारे संसार में

तब ये सिलसिला खत्म होगा शायद ।।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance