न तुम जानो न हम
न तुम जानो न हम


वो चाहती थी
तुम्हें सम्पूर्णता में प्यार करना
और जानना चाहती थी
तुम्हारे बारे में हर छोटी बड़ी बात
वो विश्वास करती थी तुम पर इतना
उसकी सांसें छाती से उठकर गले तक भर आती
वो याद रखने में कि तुम्हें क्या पसन्द है
भूलती गयी उसे भी कुछ पसन्द है
वो हर पल तानें खाती चली गयी
होश हवाश मिटटी में मिलते चले गए
कोई न जाने कोई न समझे
ये रिश्ता क्यों लगता एक बंधन है
जिसकी डोर चलनी करती है
जब भी ख़ुशी के पल चाहती '
क्यों उसे मिलती तनहा जिंदगी
वो कई ज़िन्दगियाँ समेटकर
एक ज़िन्दगी में जी लेना चाहती थी
वो पलकों की थिरकन पर
उठा लेना चाहती थी कांच की दीवार
वो अनन्त यात्राएं करती थी
और उसकी मंज़िल होते थे तुम
तुमने जिसे हरा दिया,तोड़ दिया
और पहचान भी न पाए
कि कौन थी वो और
क्या हो सकती थी वो
सिर्फ तुम्हारे लिए
उसकी मुस्कुराहटें असीम है
उसके आंसू तुम्हारे लिए फीके है
तुम ढूंढ नहीं पाओगे
वो नमकीन दर्द का ख़ज़ाना कहाँ रखती है !
उसके हर दुआ में तुम्हारी सलामती
ही केवल शेष रहते हैं।