न रोको यूँ खुद को
न रोको यूँ खुद को
पलकों की छाँव में रुके ख्वाब
भीगे मौसम के बदलने से
नाराज़ लम्हे बीते तसव्वुर में
तेरी मुस्कान के न खिलने से
तेरे दीदार का असर होता है
मुझ पर बहुत
नहीं पड़ता मुझे कोई फर्क
सूरज के निकलने से
न रोको यूँ खुद को हमेशा
कभी बह भी जाओ
वो लुत्फ़ न मिलेगा हरदम
तुझे,तेरे, संभालने से
वो दर्द तुम तक किसी रोज़
पहुंचे यक़ीनन
हर बार जो निकल आता है
ख्वाहिश के मचलने से