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niraj shah

Romance

4.7  

niraj shah

Romance

न रोको यूँ खुद को

न रोको यूँ खुद को

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पलकों की छाँव में रुके ख्वाब 

भीगे मौसम के बदलने से

नाराज़ लम्हे बीते तसव्वुर में 

तेरी मुस्कान के न खिलने से


तेरे दीदार का असर होता है 

मुझ पर बहुत

नहीं पड़ता मुझे कोई फर्क

सूरज के निकलने से


न रोको यूँ खुद को हमेशा 

कभी बह भी जाओ 

वो लुत्फ़ न मिलेगा हरदम 

तुझे,तेरे, संभालने से


वो दर्द तुम तक किसी रोज़ 

पहुंचे यक़ीनन 

हर बार जो निकल आता है 

ख्वाहिश के मचलने से


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