मज़ा आ गया
मज़ा आ गया
बहकी बहकी हवा ने तेरे चेहरे से,
ऐसे चुनरी उड़ाई मज़ा आ गया,
ग़मज़दा आँखों को तेरे चेहरे की जब,
हो गई मुँह दिखाई मज़ा आ गया।
गुल चमन गुल मगन महका-महका बदन,
चाँद सूरज से मिल कर बनी इक किरन,
अपने आँचल में तारे लपेटे हुए,
सामने जब वो आई मज़ा आ गया।
फिर मेरी ज़िन्दगानी हसीन हो गई,
फिर मेरी हर कहानी मुकम्मल हुई,
उस ने झुकती नज़र यूँ मेरे सामने,
धीरे-धीरे उठाई मज़ा आ गया।
रात भर जाग कर तुझ को सोचा किए,
चाँद तारों में तुझ को ही ढूंढा किए,
करवटें लेते लेते सुबह जब हुई,
तूने सूरत दिखाई मज़ा आ गया।
मेरी तक़दीर फ़ौरन बदल सी गई,
हाथ की सब लकीरें चमक सी गईं,
उस ने अपनी हथेली मेरे हाथ से,
इस तरह से मिलाई मज़ा आ गया।
मेरी ग़मगीन दुनिया हुई खुशज़दा,
उस से मिल कर मुझे वो सुकून है मिला,
जब से वो मेरी क़ुर्बत में रहने लगी,
ज़िन्दगी मुस्कुराई मज़ा आ गया।
दो बदन एक जान एक जान दो बदन,
कितनी अच्छी थी वो सर्दियों की अगन,
रात भर एक दूजे से लिपटे रहे,
फेंक दी फिर रज़ाई मज़ा आ गया।
देखते-देखते वो क़रीब आ गई,
मुझ को पा कर वो जैसे जहाँ पा गई,
अपने हाथों से उस ने मेरे हाथों में,
अपनी दुनिया थमाई मज़ा आ गया।