STORYMIRROR

S Pandey

Tragedy

3  

S Pandey

Tragedy

मुकरी/ /मंढली

मुकरी/ /मंढली

1 min
627


मुकरी

ओनके आये से हम सब, दहशत में जीयत बाटी।

पता नहीं कब केका मरिहइं ,केका देयिहइं डाटी।।

ओनके ऊट पटांग काम से, आवत बा अब रोना।

हे सखी साजन, ना सखी करोना।।


मंढली

सोये हुए हैं जगा रहे, जगे हुए हैं सोये।

समझ नहीं हम पा रहे, खुश होवें या रोयें।।

खुश होवें या रोयें, आई गजब बेमारी।

कहें जौनपुरी कोरोना बनकर, छाई है महामारी।।

जिसको देखो वो केवल, दहशत है फैला रहा।

शासक वैद्य व्यापारी सब, जनमन को दहला रहा।।


मुकरी

जबसे निबहुरा ई,आइ बा शहर में।

दहशत फइलाये बा, हम सबके घर में।।

सकतउं उही कब, अब तो ई रोना।

हे सखी पिलौना, ना सखी किरौना।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy