मुकद्दर
मुकद्दर
जिन्दगी तुझसे कोई शिकायत नहीं
मेरे मुकद्दर ने ही की मुझ पे इनायत नहीं
जिन राहों से बचकर निकलना चाहा
उन्हीं राहों से अकसर सामना हुआ
जिन्दगी ने मौके तो दिये
मगर चुनने की गुंजाइश नहीं
उम्मीदें जाने कैसे कैसे सपने संजोती है
तमन्नाएं मगर कहाँ पूरी होती हैं
बड़ी तकलीफ होती है ऐ दिल
जब पूरी होती कोई ख्वाहिश नहीं
सभी की सुनता है तू मेरे खुदा
कभी करीब आकर सुन मेरी दुआ
इस जहाँ से अलग
मेरी कोई फरमाइश नहीं
जिन्दगी तुझसे कोई शिकायत नहीं
मेरे मुकद्दर ने ही की मुझ पे इनायत नहीं।
