STORYMIRROR

Rominder Thethi

Tragedy

3  

Rominder Thethi

Tragedy

मुकद्दर

मुकद्दर

1 min
238

जिन्दगी तुझसे कोई शिकायत नहीं

मेरे मुकद्दर ने ही की मुझ पे इनायत नहीं

जिन राहों से बचकर निकलना चाहा

उन्हीं राहों से अकसर सामना हुआ

जिन्दगी ने मौके तो दिये

मगर चुनने की गुंजाइश नहीं

उम्मीदें जाने कैसे कैसे सपने संजोती है

तमन्नाएं मगर कहाँ पूरी होती हैं

बड़ी तकलीफ होती है ऐ दिल

जब पूरी होती कोई ख्वाहिश नहीं


सभी की सुनता है तू मेरे खुदा

कभी करीब आकर सुन मेरी दुआ

इस जहाँ से अलग

मेरी कोई फरमाइश नहीं

जिन्दगी तुझसे कोई शिकायत नहीं

मेरे मुकद्दर ने ही की मुझ पे इनायत नहीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy