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Vijay Kumar

Romance

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Vijay Kumar

Romance

मुझसे कैसा प्यार करता था

मुझसे कैसा प्यार करता था

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हंसाता था मुझको कभी रूला भी देता था

ना जाने वो मुझसे कैसा प्यार करता था

कभी बिन बोले ही सबकुछ समझ जाता था

कभी ना जाने क्यों मुझे भूला भी देता था,


बाते वो कभी प्यार भरी करता था

कभी मेरे दुखी होने से उदास हो जाता था

कभी खिलखिला के मुस्कुराता था

तो कभी अपने चेहरे को छुपा लेता था,


थाम कर मेरा हाथ कभी संग चलता था

कभी चलते - चलते दूरी बना लेता था

हंसाता था मुझको कभी रूला भी देता था

ना जाने वो मुझसे कैसा प्यार करता था,


बाते चाहे जमाने भर की करता था

पर कभी मेरी बातो में ही खो जाता था

गले लगाकर अपनी खुशियों का इजहार करता था

तो कभी दूर से ही दुआ सलाम करता था,


वो भले ही मेरे सुख दु:ख का साथी था

पर कभी सरेआम मिलने से भी कतराता था

मेरा साथ पाकर खुद को खुश नसीब समझता था

मेरे कैरियर और जीवन के लिए फिक्रमंद रहता था,


भले ही कभी इजहार ए मोहब्बत नहीं करता था 

पर मेरी बातो में मेरी यादो में वो अक्सर रहता था

जीवन के इस अजब मोड़ पे न जाने क्यों

बरबस ही आंखो में उसका चेहरा याद आया था,


हंसाता था मुझको कभी रूला भी देता था

ना जाने वो मुझसे कैसा प्यार करता था।


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