मुझको वो न मिले
मुझको वो न मिले
दर पे उनके गए और हम लौट आए
मुझको वो ना मिले ,ना उनका दीदार हुआ
कितनी चाहत है मुझको,
उनको बताना है
दिल में सिर्फ है वो ही
उनको दिखाना है
अब तो तुम मान जाओ
यूँ न मुझको सताओ
ओ मेरे सनम आओ करीब आओ
दर पे उनके गये.............
हर तरफ ,हर कोई है अपना
तू बता,तुझसे कैसे होगा मिलना
गर कहीं बिछड़ा तुझसे
जीते जी होगा मेरा मरना
तुमको हैं हम चाहते
तुमको ही हैं मानते
मेरी मन्नतो की दुआ
तुम ही हो जाओ
दर पे उनके गये.................
मिलना उनसे
लगभग तय हो गया था
वो मुझमें बस जायेगा,
तय हो गया था
उनकी चाहत ,
मुझे उनके करीब ले जा रही थी
वो भी बेसब्र हो ,
मेरा इंतज़ार किये
जा रही थी
मेरी साँसे उसका
गीत गा रही थी
वो पट पे आके
अपने नैन बिछा रही थी
उनकी हर एक अदा
ख्वाब में तिलमिला रही थी
वो अपने श्रृंगार को
सँवारती जा रही थी
उनके जैसे ही करीब मैं पहुँचा
उनके अपनों का
लगा पहरा था
मैं करीब होके दूर ही रहा
दर से कुछ दूर उनके मैं ठहरा रहा
उनका सजना-सँवरना भी न हम देख पाये
और अपनी बातों को भी न कह पाये
दर पे उनके गये..................

