मुझे वापस जाना है
मुझे वापस जाना है
रह गया जहाँ बचपन मेरा
खो गई नादानियाँ जहाँ
आज मुझे वो गांव वापस जाना है।
खेत खलिहानों में छुपकर
अपनी सहेलियों को सताना है।
सुबह-शाम वो झाड़ू की
प्रतियोगिता जैसे फिर से
अपना आँगन वैसे ही चमकाना है।
गर्मी की रात में खुले आसमान के नीचे
टिमटिमाते तारों को निहारना है।
जाड़े की रात में सखियों की टोली बनाकर
घेर के आग को फिर अपने हाथों को सेंकना है।
आम के मौसम में वो मनपसंद
बगीचे का आम चुरा के खाना है
ना कोई ज़ात था ना कोई मज़हब
साथ मिलकर मनाते थे हर त्योहार जहां
आज फिर साथ मिलकर
वो ईद दीवाली मनाना है।
अपने ना थे मगर अपने से लगते थे
आज पड़ोसियों के दादा दादी से
फिर डांट खाना है।
किस्से कहानियों के बहाने जो
अपनी परंपरा और संस्कृति सीखा गए
आज उनकी गोद में बैठ के फिर कहानी
सुनते सुनते सो जाना है।
छूट गया जो पीछे अब
बस यादों में है बाकी
आज मुझे वो गांव वापस जाना है।