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Hazra Shaikh

Drama

4.6  

Hazra Shaikh

Drama

मुझे वापस जाना है

मुझे वापस जाना है

1 min
585


रह गया जहाँ बचपन मेरा

खो गई नादानियाँ जहाँ 

आज मुझे वो गांव वापस जाना है।

 

खेत खलिहानों में छुपकर

अपनी सहेलियों को सताना है। 

सुबह-शाम वो झाड़ू की

प्रतियोगिता जैसे फिर से

अपना आँगन वैसे ही चमकाना है। 


गर्मी की रात में खुले आसमान के नीचे

टिमटिमाते तारों को निहारना है। 

जाड़े की रात में सखियों की टोली बनाकर

घेर के आग को फिर अपने हाथों को सेंकना है। 


आम के मौसम में वो मनपसंद

बगीचे का आम चुरा के खाना है 

ना कोई ज़ात था ना कोई मज़हब

साथ मिलकर मनाते थे हर त्योहार जहां

आज फिर साथ मिलकर

वो ईद दीवाली मनाना है। 


अपने ना थे मगर अपने से लगते थे 

आज पड़ोसियों के दादा दादी से

फिर डांट खाना है। 

किस्से कहानियों के बहाने जो

अपनी परंपरा और संस्कृति सीखा गए 

आज उनकी गोद में बैठ के फिर कहानी 

सुनते सुनते सो जाना है। 


छूट गया जो पीछे अब

बस यादों में है बाकी 

आज मुझे वो गांव वापस जाना है।


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