फ़ुर्सत के पल
फ़ुर्सत के पल
फ़ुर्सत के पल आज कुछ यूँ बीते
कुछ यादों में कुछ ख्यालों में बीते।
दिन भर के जद्दोजहद
और मशक्कतों को निचोड़ा
जिस पे हक़ सिर्फ मेरा है
तब जाके मिला वो पल थोड़ा।
यादें थीं बचपन की.....
वो बेपरवाह सी ज़िन्दगी
ना कड़ी धूप का डर
ना पैर जलने की फिक्र।
ख़्याल था बड़प्पन का
कुछ सपने टूटे से
कुछ रिश्ते रूठे से
ना रही अब कोई इसकी क़दर।
फुर्सत के पल जो मिले
खुद से हम बातें चार करने लगे
कुछ पल ख़ुद से नफरत कर लिया
तो कुछ पल ख़ुद से प्यार कर लिया।
वक़्त ने हालातों से लड़ना सिखा दिया
हालातों ने ख़ुद को "बदलना" सिखा दिया
ज़िन्दगी ने सिखा दिया
दिल टूट जाने पर भी ख़ामोश रहना
आज याद आता है
खिलौने के टूटने पर
फूट-फूट के रोना
अर्सा हुआ खुद से
रूबरू ना हुए हम
बिखर गई ज़िन्दगी
बिखरे नहीं हम।
थक गए हैं
अब इस ज़िन्दगी से
यही झूठ ख़ुद से
हर रोज़ कहते हैं हम
सख़्त ज़िन्दगी और मासूम से हम
काश कोई ऐसा हुनर आ जाए
उलझी ज़िन्दगी को
अगर सुलझाना आ जाए,
तो असल में
ज़िन्दगी जीना आ जाए।।
