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Hazra Shaikh

Abstract

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Hazra Shaikh

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नशा

नशा

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जानलेवा होता है नशा

कोई भी अगर चढ़ जाए किसी पर। 


शराब का, शबाब का, इश्क़ का,

जुनून का, मोहब्बत का, इबादत का।


मंज़िल की प्यास होती है

तो दो दम मार ही लेते हैं। 


और फिर नशा इस क़दर चढ़ जाता है

कि मंज़िल पा ही लेते हैं। 


पल पल मारती है ख़ुद के अंदर

ख़ुद को ज़िंदा रखने की ख़्वाहिश। 


गिरते हैं सौ बार संभलते है हर बार 

ये ऐसा नशा है जनाब जो असानी से तो चढ़ता है,

 

मगर चढ़ जाए तो बड़ी मुश्किल से उतरता है।


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