दस्तूर
दस्तूर
ज़िन्दगी का ये दस्तूर हो गया
जिसे दिल से चाहा
वो ही दूर हो गया
अपनी मर्ज़ी से
एक ही फैसला किया था
वो भी मजबूर हो गया
नजाने वक्त को क्या मंजूर है
जो हमें वक्त दिया करता था
वो अपने आप में मशरूफ हो गया
जिस प्यार पर
हम विश्वास करते थे
वो खुद मगरूर हो गया
जिस प्यार को
हम नादानी समझ रहे थे
वो हमारा फितूर हो गया
हमने दिल के सौदे किए थे
मगर उनके लिए वो सौदा
दिमाग का ज़रूर हो गया
मेरे हिस्से में बदनामी लिख
नजाने कैसे वो
मशहूर हो गया।