मरहम(गजल)
मरहम(गजल)
कड़ाके की ठंड में कभी फुटपाथ पर सो कर तो देखें
पराये गम में भी कभी आंसू बहाकर तो देखें।
जमाने में जिसका कोई सहारा नहीं, कभी उसका
सहारा बन कर तो देखें।
बड़ा आसां है खुद के जख्मों को मरहम लगाना सुदर्शन,
कभी बेसहारे को मरहम लगा कर तो देखें।
क्यों नफरत के समन्दर में डूबे हैं सभी, कभी मुहब्बत का रिश्ता निभा कर तो देखें।
हाथ में इक्का हो तो जीत जाते हैं सभी, कभी जोकर
को भी अजमा कर तो देखें।
जो जीता हो, वोही बन जाता है सिकन्दर आखिर कभी हारे
को सिकन्दर बना कर तो देखें।
क्यों मखमल के गद्दों पर भी नींद नहीं आती कभी, कभी
नंगे फर्श को आजमा कर तो देखें।
इन्सानियत की डोर टूट रही है हर तरफ कभी भाईचारे को बढ़ा कर तो देखें।
दिया है अनमोल जन्म किसके लिए प्रभु ने, कभी
इस प्रश्न को निकाल कर तो देखें।
आजमाना चाहता है अगर उस मालिक की ताकत को तो
कभी गरीब को भोज खिलाकर दो देखें।
जर्रे जर्रे में बास है उस प्रभु का, कभी मन की मैल को
मिटा कर तो देखें।