मोहब्बत
मोहब्बत
मासूम, भोली, नाजुक, होती है दिल की हसरत
समता और सौम्यता, भर देती जिसमें कुदरत
जल्दबाजी, लापरवाही, की जिसमे मिले आदत
बेगुनाह व गुस्ताख, होती है ये मोहब्बत।
राहों के कंकर-पत्थर, चुभते निकलते जाते
अरमानों की कतारों, में सब फिसलते जाते
भीनी सी एक कशिश भी, दिल में दबी है रहती
मुश्किल से भी झटपट, सब है गुजरते जाते।
तनहाई जितनी बढ़ती, बढ़ जाती है ये चाहत
बेगुनाह व गुस्ताख, होती है ये मोहब्बत।।
दिल में गिटार बजते, होती है जब जब बारिश
मन में अजीब लगती, इजहार की हर सिफारिश
हुस्न व अदाओं का, भी है समां फीका लगता
उनके ख़्याल बिन अब, दिखता है सब लावारिस।
भगवान की जगह उनकी, होती है अब इबादत
बेगुनाह व गुस्ताख, होती है ये मोहब्बत।।
आहट कोई है होती, लगता वो ही निकट है
दूरी के सारे लम्हें, लगते क्यों अब विकट है
वो ही कमाल लगते, उनका ही ध्यान होता
हर गीत में वही है, उनकी ही अब तो रट है।
ख्यालों से अब उनके, मिलती नहीं है फुरसत
बेगुनाह व गुस्ताख, होती है ये मोहब्बत।।

