मोहब्बत की आग
मोहब्बत की आग
हमें अजनबी यूँ.... बनाना गलत था,
मोहब्बत में ऐसे... रुलाना गलत था।
शराबी हूँ माना... मगर तेरा साक़ी,
ग़मों का ये दरिया पिलाना गलत था।
जगाई थी तुमने लगन प्यार की ये,
मगर चाह इसकी मिटाना गलत था।
ये तन्हाइयों में... बड़ा दर्द है अब,
वो बाँहों में उनका समाना गलत था।
गुलों की जवानी क्यूँ अरमां जगाती,
कली बंद थी तो खिलाना गलत था।
इशारा न समझा अदाओं का तुमने,
ज़ुबाँ बोलती क्या बताना गलत था।
जला है पतंगे के जैसा 'निधि' दिल,
इसे प्यार में आजमाना गलत था।।
