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Mamta Agrawal

Romance Classics

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Mamta Agrawal

Romance Classics

अजनबी

अजनबी

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हमें अजनबी यूँ.... बनाना गलत था

मुहब्बत में ऐसे... रुलाना गलत था।


शराबी हूँ माना... मगर तेरा साक़ी,

ग़मों का ये दरिया पिलाना गलत था।


जगाई थी तुमने लगन प्यार की ये,

मगर चाह इसकी मिटाना गलत था।


ये तनहाइयों में... बड़ा दर्द है अब,

वो बाहों में उनका समाना गलत था।


गुलों की जवानी क्यूँ अरमां जगाती 

कली बंद थी तो खिलाना गलत था।


इशारा न समझा अदाओं का तुमने,

ज़ुबाँ बोलती क्या बताना गलत था।


जला है पतंगे के जैसा 'निधी' दिल,

इसे प्यार में आजमाना गलत था।


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