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Richa Baijal

Abstract

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Richa Baijal

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मंज़िल से मिलाता है रास्ता

मंज़िल से मिलाता है रास्ता

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अकेला सा है रास्ता 

न जाने कितनों की मंज़िल का ज़रिया बना 

और फिर उनके जाने के बाद अकेला सा रहा 

न महत्त्व उसका कुछ था 

बस धूल भरे पैरों की छाप थी 

मंज़िल की ही सबको तलाश थी 

यूँ मुमकिन था उसका अकेला - सा रह जाना 

कि सबको मुकाम तक पहुँचने की आस थी .

मुसाफिर की थकान मिटाता है रास्ता 

मंज़िल तक पहुँचाता है रास्ता ।


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