मनवास
मनवास
यह वनवास अब सीता तुम्हारा हो
ना रावण का भय हो ना लक्ष्मण की रेखा हो
इस बार ना प्रतिष्ठा के लिए आदेश हो
ना वचनों से विवश हो
अब ना रघुकुल के सम्मान का दायित्व हो
और ना तुम किसी के प्रतिशोध का पात्र बनो
भूमीजा अब भूमि मा के आंचल में खुला कर जीना, खुल कर हंसना
ना होगा यह सफर आसान जान लो
पर स्वाभिमान के लिए यह बलिदान दो
अब ना प्रेम के राम होंगे ना रक्षा के लिए लक्ष्मण
किन्तु तुम्हारे लिए ही खिलेगा वन का कण कण
ना सुरफ्णख की इच्छा मारी जाएगी
ना तुम्हे ग्लानि सत्येगी
अब भूमिका पीहर लौट आयेगी
ना अब अशोक वाटिका होगी ना दंडकारण्य होगा
ना अब कोई जयंत होगा
ना नदी पार करने केवट होगा
ना सोने का हिरन होगा ना रावण का अभिमान होग
ना आयोध्य के मान का दैतिव होगा
माता गार्गी के सभी पाठ अब काम आयेंगे
अहल्या और अनसूया की सभी क्षण स्मृतियों में याद आयेंगे
अब ना मन्दोदरी- सरमा के अश्रु होंगे
ना सुलोचना की पीढ़ा होगी
ना सूर्पनखा के दंभ होगा
और ना त्रिजटा सखी होगी
ना अयोध्या के स्वर्ण के अभोषण होंगे
ना लंका के छल के स्वर्ण मृग
अब ज्ञान तुम्हारा उपहार होगा
और स्वाभिमान तुम्हारा श्रृंगार
ना अब मेघनाथ मारा जायेगा
ना जटायु हराया जायेगा
ना मंदोदरी अक्षय गवाई गी
ना सुलोचना विधवा कहलाएगी
अब ना तुम्हारी करुणा छलि जाएगी
ना तुमसे पति प्रेम की परीक्षा ली जाएगी
ना तुमसे कोई अग्नि परीक्षा मांगी जाएगी
ना अशोक वाटिका में तुम्हारी स्वतंत्रा छीनी जाएगी
ना लक्ष्मण को वो वचन कहने का दुख सत्याएगा
ना अब वो एक इक्षा प्रकट करने का अनुताप सिर आयेगा
ना किसी पे विश्वास करने का भय
ना रेखा लांघने का पश्चताप होगा
याद कभी अंजनेय की भक्ति की आयेगी
तो कभी प्रेम की स्मृतियां सताएंगी
पर यह सह कर ही वैदेही आने वाली सभी स्त्रियों को स्वाभिमान का मोल सीख्येगी
अब ना आंसू बहओ भूमिजा तुम तो सच्चे पीहर लौट आई हो
वन में मानो तुम ही अपने पग से संतोष संपूर्णता लाई हो
मिथिला के भूले बिसरे जीवन का प्रतिबिंभ दिखेगा
मां सुनैना का स्नेह मिलेगा, पिता जनक सा ज्ञान मिलेगा
माना की उर्मिला,मांडवी,श्रुत्कीर्ति की याद आयेगी
पर तितलियों, झरनों , पुष्पों में उनकी भी छवि दिख जाएगी
इस बार परीक्षा तुम्हारे सब्र और साहस की ली जाएगी
प्रशंसा अब तुम्हारे स्वाभिमान की की जाएगी
जब पता चलेगा माताओं को वो जरूर अश्रु बहेंग
किन्तु शायद वे शांत रह जाएंगी
उर्मिला - शांता तो अवश्य आवाज़ उठाएं
वन तो तुम्हे हमेशा से प्यारा था
बस उस समय श्री राम का सहारा था
पर इस बार ना किसी रिश्ते की बंधन में तुम बंधी हो
इस बार तो सिर्फ भूमि पुत्री वनदेवी हो
सोने के लिया ना सही कोमल बिछौना
पर ठंडी हवा की थपकी होगी
माना परिश्रम से थोड़ी थकान होगी
पर मुख पे वो संतुष्टि की मुस्कान अतुलनीय होगी
साथ फिर तुम्हारे अयोध्या के दो राजकुमार जायेंगे
एक और बार वचन वनवास दोहराएंगे
पर अब इनके संस्कारों पे अधिकार केवल तुम्हारा होगा
यह वनवास अब सीता अब तुम्हारा होगा।