STORYMIRROR

Akhtar Ali Shah

Drama

3  

Akhtar Ali Shah

Drama

मंजिल पे पहुंच न पायेगा

मंजिल पे पहुंच न पायेगा

1 min
226

जिसको नोटों ने बांध लिया,

कैसे वो दौड़ लगाएगा।

वो लाख कोशिशें करे मगर,

मंजिल पे पहुंच न पायेगा।


लालच के खाली कुएँ में

जो कोई भी गिर जाता है।

वो देह सजाता जख्मों से,

नादान यहां कहलाता है।


जो वक्त गंवा दें बेमतलब,

कैसे जीवन महकायेगा।

वो लाख कोशिशें करे मगर,

मंजिल पे पहुँच न पायेगा।


धन बिना कमाया पाता जो,

मेहनत वो नही किया करता।

गैरों पर दृष्टि जमाए वो,

परभक्षी बना जीया करता।


उसकी जब सूखेगी बगिया,

जल कौन वहां पहुँचायेगा।

वो लाख कोशिशें करे मगर,

मंजिल पे पहुँच पायेगा।


पैसा सुख तो दे सकता है,

आनंद कहाँ से लायेगा।

बलिदानों से मिलने वाला,

धन से न खरीदा जायेगा।


एक देना है एक लेना है,

जो लेने को अपनायेगा।

वो लाख कोशिशें करे मगर,

मंजिल पे पहुँच न पायेगा। 


कुछ लोग दिखाकर चमक-दमक,

लोगों को दास बनाते हैं।

बंदूकें उनके कांधों पर,

रखते हैं और चलते हैं।


खुद जिसको गिरना हो "अनंत",

जग कैसे उसे उठायेगा ।

वो लाख कोशिशें करे मगर,

मंजिल पे पहुँच न पायेगा। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama