मन्दिर-मस्जिद छोड़ो..
मन्दिर-मस्जिद छोड़ो..


पढ़ो लिखो,
अज्ञान और
जड़ता के गहरे
इन्द्रजाल को तोड़ो,
मन्दिर-मस्जिद छोड़ो।
मन्दिर उनका,
मस्जिद उनकी,
वे नेता हम अनुयायी हैं ,
उनको नहीं ऑंच तक
आती,
हमने हर लाठी खायी है।
जानें गईं घरौंदे उजड़े,
मिली हमें केवल मायूसी,
मान-प्रतिष्ठा-दौलत-सत्ता,
सब उनके हिस्से आयी है।
पढ़ो लिखो,
भ्रम-जाल तोड़,
धर्मों के सारे झूठे
भाँडे फोड़ो।
मन्दिर-मस्जिद छोड़ो।
मन्दिर टूटे, मूरत टूटे या
मस्जिद ही जाय गिराई,
कोई देव न ईश्वर दिखता,
अल्लाह पड़ता नहीं दिखाई।
तुम हो यहाँ, वहां भी तुम हो,
या है पागल भीड़ तुम्हारी,
दिखे महन्त इमाम न करते,
कहीं परस्पर हाथा-पाई।
पढ़ो लिखो,
अब साफ साफ
उनके भड़काऊ
भाषण से मुँह मोड़ो।
मन्दिर-मस्जिद छोड़ो।
पढ़ो लिखोगे तब जानोगे,
क्या है झूठ और सच क्या है,
धर्म अनेक, एक है जीवन,
जीवन सत्य, धर्म मिथ्या है।
ऐसा धर्म त्यागना अच्छा,
आपस में जो बैर सिखाए,
धर्म-पुरुष हैं व्यापारी सब,
धर्म-अध्ययन ठग-विद्या है।
पढ़ो लिखो,
इतिहास गढ़ो,
इन्सान बनो,
कुदरत से रिश्ता जोड़ो।
मन्दिर-मस्जिद छोड़ो।